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हमारे हिंदू पुराणों तथा शास्त्रों में कई ऐसे पर्व हैं जिन्हें हम बड़े ही श्रद्धा पूर्वक तथा रीति रिवाज के साथ मनाते हैं इन्हीं पर्व में से एक राधा अष्टमी है। राधा अष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाने वाला पर्व है यह ठीक श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद आता है हिंदू सनातन में श्री राधा रानी सरकार को हमारे आराध्य श्री कृष्ण जी की शक्ति माना गया है और ऐसा कहा भी जाता है कि राधा जी के बिना कृष्ण ही नहीं बल्कि उनके भक्तों की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। राधा अष्टमी को श्री राधा जी के प्राकृतिक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हमारे पुराणों के अनुसार इसी दिन मथुरा शहर के बरसाने गांव में ब्रष भानु जी और कीर्ति जी के घर राधा जी ने जन्म लिया था राधा जी को हिंदू धर्म में प्रमुख देवी भी माना जाता है और श्री राधा को माता लक्ष्मी जी का अवतार भी कहा जाता है तो लिए राधा अष्टमी के बारे में हम नीचे विस्तार से जानेंगे।
नाम (पद्म पुराण के अनुसार) | राधा ब्रषभानु |
जन्म स्थान | बरसाने रावल गांव मथुरा उत्तर प्रदेश |
जन्मतिथि | भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि |
माता जी का नाम | कीर्ति देवी जी |
पिताजी का नाम | वृषभानु जी |
भाई का नाम | श्रीदामा |
राधा जी की पूजा क्यों की जाती हैॽ
हमारे हिंदू शास्त्रों में कई सारे पर्व हैं जिन्हें भक्त बड़ी उत्साह पूर्वक तथा श्रद्धा भाव से मनाते हैं हमारे ग्रंथो के अनुसार समय-समय पर अनेक देवी देवताओं ने अवतार भारत भूमि पर लिया है जिस दिन तथा जिस तिथि पर वह अवतार लेते हैं उस दिन को तथा उस तिथि को उनके प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्री राधा जी ब्रषभानु जी की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थी जिस समय वह प्रकट हुई तब वेद तथा पुराण आदि कृष्ण बल्लभ कहकर भाव विभोर हो उठे तथा उनकी भक्ति से उनका गुणगान करने लगे। कहा जाता है कि श्री राधा जी की पूजा के बिना श्री कृष्ण की पूजा भी अधूरी है श्रीमद् देवी भागवत में श्री नारायण भगवान ने नारद जी को बताया है यदि मनुष्य के द्वारा श्री राधा की पूजा ना की जाए तो वह श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखते समस्त वैष्णव तथा जो भक्त वैष्णव नहीं है किंतु श्री राधा या श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं उन्हें निश्चित श्री राधा रानी सरकार की पूजा करनी चाहिए। राधा जी तो भगवान कृष्ण के प्राणों की देवी हैं तथा कृष्ण जी स्वयं कहते हैं यदि मनुष्य राधा की पूजा श्रद्धापूर्वक करें तो निश्चित उसे मेरी कृपा भी अवश्य प्राप्त होती है।
राधा अष्टमी का महत्व क्या हैॽ
सनातन शास्त्रों में सभी व्रत तथा त्योहारों का अपना ही विशेष महत्व माना गया है राधा अष्टमी का भी विशेष महत्व है अगर हम बात करें इस पर्व के व्रत की तो प्राचीन काल से ऐसा माना जाता है राधा अष्टमी को विवाहित महिलाएं संतान सुख तथा उनके सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। कई मान्यताओं के अनुसार जो भी मनुष्य राधा रानी को प्रसन्न कर देता है उनसे भगवान श्री कृष्ण स्वतः स्वयं ही प्रसन्न हो जाते हैं। राधा अष्टमी के दिन राधा जी का व्रत करने तथा उनकी श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करने से वह अपने भक्तों की सारी परेशानियों को समाप्त कर देती हैं। राधा अष्टमी के दिन मनुष्य को ज्यादा से ज्यादा दान धर्म पुण्य करना चाहिए। राधा जी को लक्ष्मी मां का ही रूप माना जाता है इस दिन ऐसा करने से भक्तों के घर में सुख समृद्धि बनी रहती है तथा लक्ष्मी मां का आगमन भी होता है। श्री राधा और श्री कृष्ण दोनों को ही हमेशा से एक दूसरे का पूरक माना गया है राधा अष्टमी के दिन भक्तों को राधा रानी और श्री कृष्ण दोनों के दर्शन करना चाहिए क्योंकि मान्यताओं के अनुसार दोनों का ही एक दूसरे के बिना अस्तित्व अधूरा माना गया है।
राधा अष्टमी व्रत विधि व भोग
प्राचीन काल से विख्यात है हिंदू सनातन में देवी देवताओं के प्रति भक्तों का श्रद्धा तथा भावपूर्वक से ही उनके आराध्य उनसे प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन हम आपको बताएंगे राधा जी का व्रत करने की क्या विधि है तथा उनके लिए इस दिन भोग के रूप में आप उन्हें क्या अर्पण कर सकते हैं। अब हम जानेंगे राधा अष्टमी के व्रत की विधि जो निम्न प्रकार से है।
- प्रातः काल सुबह उठकर अपने दैनिक नित्य क्रिआयो से निवृत होने के बाद स्नान करें।
- स्नान के पश्चात नये वस्त्र को धारण करें यदि आपके पास नये वस्त्र न हो तो साफ तथा धूल वेस्टन को धारण करें।
- आपको श्री राधा अष्टमी व्रत का संकल्प लेना है संकल्प पश्चात आपके पास उपलब्ध सामग्री को पास रखें।
- अब आप पूजा स्थल पर एक मंडपबनाकर वहां कलश स्थापित करना है।
- तत्पश्चात आपको तांबे के पत्र में राधा रानी की प्रतिमा स्थापित करनी है यदि तांबे का पत्र ना हो तो साफ भाषण या मिट्टी का भाषण भी चलेगा।
- फिर आपको राधा रानी की प्रतिमा का पंचामृत से स्नान करना है स्नान पश्चात उन्हें साफ वस्त्राभूषण से सिंगर करें।
- तत्पश्चात भोग फल आदि उन्हें अर्पित करें।
- भोग अर्पण के बाद आप राधा जी के मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
- यदि आपको मंत्र नहीं आते तो आप उनका स्मरण भी कर सकते हैं इसके बाद आरती की थाल को तैयार करें।
- व्रत की विधि पूरी तरह संपन्न हो जाने पर आरती प्रारंभ कर सकते हैं।
अब हम बात करेंगे राधा जी के लिए भोग की भोग में आप राधा जी को मीठा पान रख सकते हैं मीठा पान राधा जी का अत्यंत प्रिय माना जाता है। आप मिठाइयां फल भी रख सकते हैं या फिर आप 56 प्रकार के व्यंजन भी रख सकते है।
राधा अष्टमी पूजा मुहूर्त
प्रत्येक वर्ष राधा अष्टमी अलग-अलग दिन अलग-अलग तारीख को मनाई जाती है इस वर्ष राधा अष्टमी 22 सितंबर 2023 को 01:22 पर प्रारंभ हो रही है जो कि अगले दिन 23 सितंबर 2023 को दोपहर के समय 12:17 तक रहेगी। यदि हम उदय तिथि के अनुसार बात करें तब यह 23 सितंबर को मानी जाएगी किंतु हमारे शास्त्रों में तथा ज्योतिष गणना अनुसार त्योहारों को तिथि के साथ उल्लेख किया जाता है।
राधा अष्टमी की कथा कहानी
इस विषय में सभी भक्तों की अपनी-अपनी मान्यता है कहा जाता है कि राधा रानी के व्यवहार के कारण श्री कृष्ण के प्रिय सखा सुदामा जी को श्री राधा पर अत्यंत क्रुद्ध आया और इसी व्यवहार को देख राधा रानी भी सुदामा से क्रोधित हो उठी। दोनों के मध्य क्रोध इतना तीव्र था कि जिसके चलते श्री राधा और सुदामा में एक दूसरे को भयंकर श्राप दे दिया था। श्री राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने तथा सुदामा ने श्री राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का अभिशाप दे दिया था। हालांकि यह पूरी घटना उन्हीं की लीला का एक अभिन्न अंग कहा जाता है जिसके चलते वह अपने भक्तों से मिलने तथा उनका उद्धार करने धरा पर अवतरित होते हैं सुदामा के दिए अभिशाप के कारण भी राधा जी को धरती पर जन्म लेना पड़ा और जिस समय उन्होंने जन्म लिया वह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी जिसे अब राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
अगर आपको राधा अष्टमी से जुड़ी हुई कोई बात समझ नहीं आ रही है तो उसे आप हमसे कमेंट करके पूछ सकते हैं और क्या आप राधा अष्टमी का व्रत रखते हैं या नहीं हमें कमेंट में जरूर बताएं।
धन्यवाद