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हमारे हिंदू धर्म में पूर्णिमा का बडा ही धार्मिक महत्व माना गया है कहा जाता है प्राचीन समय से पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष में हर माह आती है और हर पूर्णिमा का अलग-अलग महत्व माना जाता है। ऐसी ही एक पूर्णिमा है जो कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष को आती है जिसे पंचांग अनुसार कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। हमारे हिंदू शास्त्र के पंचांग अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। इसके ठीक एक महीने बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा मनाई जाती है। प्राचीन काल से विख्यात है कार्तिक माह की पूर्णिमा को सारे देवता धरती पर आकर अपनी दिवाली मनाते हैं इसलिए कई जगह पर इसे देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा का अपना-अपना अलग ही महत्व माना गया है,कहते हैं कार्तिक माह की पूर्णिमा को भगवान शिव ने महा भयंकर राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था इसलिए इसे हम त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को दान करने से आपके और आपके परिवार के लिए बहुत ही सफलदायक होता हैं। इसका बहुत ही महत्व माना गया है कार्तिक पूर्णिमा को यदि आप सुबह जल्दी गंगा जी में या किसी अन्य नदी में स्नान करते हैं तो उस स्नान का अत्यधिक फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन की गई पूजा आपको अत्यधिक फल देता है इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर दिन सोमवार को मनाई जाएगी।
नाम | कार्तिक पूर्णिमा |
दिन | 27 नवंबर 2023 सोमवार |
प्रारंभ | 26 नवंबर 03:53 मिनिट से |
समापन | 27 नवंबर 02:45 मिनिट पर |
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वैसे तो वर्ष में 12 पूर्णिमा होती हैं किंतु सभी पूर्णिमा का अलग-अलग महत्व माना जाता है। हम बात करेंगे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा को जो की 27 नवंबर को है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन कई तरह के उत्सव मनाए जाते हैं, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर हम बात करें चंद्रमा की तो चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है जो की कर्क राशि का स्वामी भी होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी जातक पूरे विधि विधान से भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं उन सभी जातकों का व्रत सफल माना जाता है। भगवान शिव को भोले भंडारी कहा जाता है क्योंकि वह अपने भक्तों को भंडार भरकर उनकी मनोकामना का फल देते हैं भगवान की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए इस मंत्र के जाप से खराब स्वास्थ्य, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। वैसे तो साल में 12 पूर्णिमा होती है लेकिन जिस वर्ष अधिक मास लगता है तब पूर्णिमा की एक तिथि बढ़ जाती है, ऐसे में 2023 में अधिक मास लगा था जिसके चलते कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण मानी जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करें
हमारे शास्त्रों के अनुसार हमारे त्योहार पर हमें क्या करना है, क्या नहीं करना है इसके बारे में बड़े-बड़े विद्वान पंडितों ने पंचांग तैयार किए है, तो चलिए अब हम जानेंगे कार्तिक पूर्णिमा पर क्या करना चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन आपको अपने-अपने घर की सफाई रखना चाहिए क्योंकि साफ घर में ही माता लक्ष्मी का वास होता है।
- आप अपने पूरे घर को फूलों से सजाए और घर के में गेट पर भी स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाएं।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन आपको मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु जी की भी आराधना करनी चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी को चावल, चीनी और दूध का दान करना चाहिए। इस दिन चांद को भी देखना शुभ माना जाता है।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन आप पूरे घर में दीपक जरूर जलाएं और इस दिन दीपदान भी अवश्य करें जिससे आपको सभी प्रकार की समस्या से निवारण मिले।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या नहीं करना चाहिए हमने ऊपर आपको अपने आर्टिकल में बताया है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए। अब हम बताएंगे कार्तिक पूर्णिमा के दिन हमें क्या नहीं करना चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन देर तक नहीं सोना चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पत्ते को गलती से भी नहीं तोड़ना चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी भी व्यक्ति को मांसाहारी या तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
- पूर्णिमा के दिन आपको अपने घर को भी गंदा नहीं रखना चाहिए तथा दूल्हे बस आप वेस्टन को ही धारण करना चाहिए।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन हरी सब्जी भी नहीं खाना चाहिए तथा किसी के व्यक्ति के प्रति दोष भावना भी नहीं रखना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
हमारे पंचांग के अनुसार बताया गया है कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और सिद्ध योग का निर्माण हो रहा है। कार्तिक पूर्णिमा के विशेष दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। शिवयोग रात्रि 11:39 तक रहेगा और इसके बाद सिद्ध योग शुरू हो जाएगा। वहीं अगर हम बात करें सर्वार्थ सिद्ध योग की तो यह दोपहर 01:35 से पूर्ण होकर रात्रि तक रहेगा। कार्तिक पूर्णिमा के विशेष दिन पर सभी मुहूर्त को पूजा पाठ करने के लिए श्रेष्ठ माने जा रहे है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान दान करने का विशेष महत्व है आपको बता दे की ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:05 से सुबह 5:59 तक रहेगा।
पूर्णिमा की पूजा सामग्री
- लकड़ी की चौकी
- लाल वस्त्र
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी की मूर्ति (फोटो भी चलेगी)
- सिंदूर
- घी का दीपक
- गंगा जल
- फल
- फूल
- मिठाई
- फूल मालाएं
- पंचामृत
- नेवेध
- धूप
कार्तिक पूर्णिमा की व्रत पूजा विधि
- सर्वप्रथम आपको सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना है स्नान आदि करने के बाद आपको व्रत संकल्प लेना है।
- अब आपको अपने पूजा स्थल पर जाना है पूजा स्थल को अच्छे से साफ करके वहां नीचे स्वास्तिक चिन्ह बनाना है तथा वहां पर लकड़ी की चौकी को रखना है।
- चौकी पर लाल कपड़ा बेचकर उसे पर भगवान नारायण की मूर्ति को रखें तथा वहीं पास में गणेश जी की फोटो रखें।
- अब आपको एक घी का दीपक जलाना है और अग्नि को साक्षी मानकर आगे की पूजा करना है। सबसे पहले प्रथम पूज्य गणेश जी का आवाहन करना है और उनकी पूजा करना है।
- उसके बाद अब आपको रोली,मोली,चावल, पुष्प आदि से गणेश जी की पूजा करना है।
- इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आवाहन करना है। उसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों को पंचामृत से स्नान करवाना है।
- पंचामृत स्नान करवाने के बाद आपको भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान करवाना है।
- अब आपको रोली से तिलक लगाना है और चावल लगाना है।
- इतना सब करने के बाद आप भगवान को वस्त्र तथा उपवास्त्र बनाएं।
- अब आपको पान के पत्तों में सुपारी रखकर भगवान को अर्पण करना है तथा सत्यनारायण व्रत की कथा का पाठ करना है।
- अब तुलसी रखकर नैवेद्य और भोग अर्पित करें।
- भगवान को दक्षिणा अर्पित करें।
- अब आपको एक ताल में घी का दीपक तैयार करना है तथा दूसरे दीपक में धूप डालकर उसे पर कपूर रखकर भगवान की आरती करना है।
कार्तिक पुर्णिमा की पौराणिक कथा
हमारे सनातन धर्म में हर एक कथा के पीछे भगवान की लीला का वर्णन देखने को मिलता है तथा किसी भी विशेष दिन की एक अलग कथा सुनने को मिलती है। ऐसी ही एक कथा है कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा जिसे हम प्राचीन समय से सुनते आ रहे हैं,कहा जाता है एक महाभयंकर राक्षस ने जब अपनी शक्ति से देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था, तब सभी देवता परेशान हो गए थे। सभी देवताओं को परेशान देख भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी ने तारकासुर नामक राक्षस का वध कर दिया था। तारकासुर के वध के बाद उसके बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष विदुयुन्माली इतने अत्यधिक क्रोधित हुए कि उन्होंने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करना प्रारंभ की। उन तीनों की तपस्या को देखकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए उनसे वरदान मांगने को कहा, ब्रह्मा जी के कहने के पर तीनों राक्षसों ने अमरता का वरदान मांगा। राक्षसों के अमरता के वरदान मांगने पर ब्रह्मा जी ने वरदान देने से साफ मना कर दिया। तब तीनों राक्षस ने बहुत विचार विमर्श करने के बाद ब्रह्मा जी से कहा आप तीन अति भव्य पूरियों का निर्माण करिए और जब यह तीन पूरियां अभिजीत नक्षत्र में एक ही पंक्ति में एकत्र होंगे तभी हमारा वध हो सकेगा। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर उन्होंने स्वर्णपुरी, रजतपूरी और लोहपूरी के रूप में त्रिपुर बसाए। ब्रह्मा जी के मिले इस वरदान से उन्होंने समस्त लोको में इतना हाहाकार मचा दिया तब सभी देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे। सभी देवताओं ने महादेव को अपना आधा बल प्रदान किया। जैसे ही सभी देवताओं ने महादेव को अपना आधा बल प्रदान किया तभी पृथ्वी माता रथ बन गई सूर्य व चंद्रदेव उनके पहिए बन गए, मेरुपर्वत धनुष, वासुकी धनुष की प्रत्यंचा तथा भगवान विष्णु बाण बने। जैसे ही अभिजीत नक्षत्र में तीन पुरिया एक सीधी रेखा में आई तब भगवान शिव के द्वारा चलाए गए बाण से तीनों राक्षसों तथा उनकी पुरिया सहित नष्ट कर दिया गया यही से भगवान शिव को त्रिपुरारी के नाम से जाना जाने लगा।
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