Utpanna ekadashi kab hai | उत्पन्ना एकादशी व्रत कब है, उत्पत्ति एकादशी की कथा

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हमारे हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत ही अत्यधिक महत्व माना जाता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन पूजा करने पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। अगर हम बात करें हिंदू पंचांग की पंचाग अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष को पढ़ने वाली तिथि को उत्पन्ना एकादशी नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत करने से भक्तों के जीवन से पापों का नाश होता है और मां लक्ष्मी की असीम कृपा बरसती है जिससे भक्तों के घर में सुख समृद्धि का वास होता है। अगर हम बात करें उत्पन्ना एकादशी के व्रत की तो ऐसा माना जाता है उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी के दिन जो भी भक्त पूरे श्रद्धा अनुसार विधिपूर्वक व्रत करते हैं और भगवान विष्णु जी मां लक्ष्मी जी की पूजा करते है, उनके जीवन में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी की कृपा सदैव बनी रहती है तथा जातक की सभी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है। उत्पन्ना एकादशी के दिन जातक को दान पुण्य भी करना चाहिए, वैसे तो दान पुण्य करने का कोई भी दिन कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं होता एकादशी के दिन दान पुण्य करने से उसका फल अत्यधिक प्राप्त होता है। इस वर्ष एक उत्पन्ना एकादशी 8 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी।

नाम उत्पन्ना एकादशी (उत्पत्ति एकादशी)
तिथि प्रारंभ 8 दिसंबर सुबह प्रातः 05:06 मिनिट पर
तिथि समापन9 दिसंबर सुबह 06:31 मिनिट पर

उत्पन्ना एकादशी कब है (utpanna ekadashi kab hai)

पंचांग के अनुसार उत्पन्ना एकादशी इस वर्ष 8 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी, हमारे सनातन धर्म में किसी भी तिथि को उदिया अनुसार माना जाता है एकादशी तिथि 8 दिसंबर सुबह 5:06 पर प्रारंभ होगी जो 9 दिसंबर सुबह 06:31 तक रहेगी। इसलिए उत्पन्ना एकादशी को शास्त्र अनुसार 8 दिसंबर 2023 को माना जायेगा।

उत्पन्ना एकादशी का महत्व (utpanna ekadashi ka mahatva)

हमारे हिंदू धर्म में सभी एकादशी का अपना-अपना महत्व माना जाता है तथा साथ में सभी व्रत, त्यौहार, तिथियों का अलग-अलग पंचांग अनुसार मुहूर्त और महत्व होता है,‌ आज हम बात करेंगे उत्पन्ना एकादशी के महत्व की तो चलिए शुरू करते हैं। उत्पन्ना एकादशी के शुरू होने की एक प्राचीन कहानी है कहते हैं इस दिन भगवान विष्णु से एक देवी उत्पन्न हुई थी, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रकट होने के कारण इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, प्राचीन समय से कहा जाता है जितना फल अश्वमेध यज्ञ, तपस्या, तीर्थ स्थान करने से प्राप्त होता है उतना फल उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत करने से ही मिल जाता है। इस दिन किए गए व्रत उपवास से तन मन निर्मल हो जाते हैं तथा शरीर के स्वास्थ्य में भी सुधार आता है। आपको बता दें किसी भी एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारंभ किया जाता है।

उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है (utpanna ekadashi kyo manate hai)

मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है भगवान विष्णु जब निद्रा में थे तब उनसे एक तेज प्रकाशमई देवी प्रकट हुई और मुर नामक राक्षस का वध किया था जब भगवान विष्णु निद्रा से जागे तब उन्होंने प्रकट हुई देवी से कहा आप एकादशी को उत्पन्न हुई है इसीलिए आज से भक्तो के समक्ष आपको उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाएगा। तब से भक्तों द्वारा जब भी एकादशी के व्रत करने की शुरुआत होती है तो वह उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत करके एकादशी व्रत की शुरुआत करते है। यह एकादशी देवउठनी एकादशी के बाद आती है।

उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि (utpanna ekadashi ki puja vidhi)

वैसे तो हमारे हिंदू सनातन धर्म में प्रत्येक एकादशी तथा प्रत्येक त्यौहार की अलग-अलग पूजा विधि एवं पूजा सामग्री होती है, ठीक इसी प्रकार उत्पन्ना एकादशी की भी एक अलग पूजा विधि है जो इस प्रकार है।

  • सर्वप्रथम आप उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रातः काल जल्दी उठे और नित्यक्रियायों से निवृत होकर स्नान करके साफ वस्त्रों को धारण करें।
  • स्नान के पश्चात जो भी जातक व्रत करना चाहते हैं वह अपने व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद भगवान विष्णु जी को फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • इतना करने के बाद दूध, दही, घी, शहद और पंचामृत भगवान विष्णु जी को अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु जी को तुलसी अत्यधिक प्रिय है इसलिए पंचामृत में तुलसी का पत्ता जरूर डालें।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन शाम के समय भगवान विष्णु जी की पूजा जरूर करें और आप तुलसी माता के पौधे के पास घी का दीपक भी जलाएं।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु के विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीहरि स्तोत्रम का पाठ करना भी अवश्य करें।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी के दिन मंदिर भी जाए।
  • एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि में खोला जाता है इसलिए द्वादशी तिथि को सात्विक भोजन का ही सेवन करें
  • एकादशी तिथि का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारंभ होता है इसीलिए दशमी तिथि के दिन भी सात्विक भोजन करें।

उत्पन्ना एकादशी की कथा (utpanna ekadashi ki katha)

मान्यताओं के मुताबिक सतयुग में एक मुर नामक राक्षस उत्पन्न हुआ था वह बहुत ही शक्तिशाली दैत्य दानव था। मुर नामक दैत्य ने इंद्रदेव, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को युद्ध में पराजित करके भगा दिया था, जिससे भयभीत होकर देवताओं ने भगवान शिव जी के पास जाना उचित समझा। जैसे ही भगवान शिव जी के पास सभी देवता पहुंचे उन्होंने अपनी सारी वृतांत भगवान शिव जी को बताई और उनसे सहायता मांगी। तब भगवान शंकर जी ने सभी देवताओं को तीनों लोकों के स्वामी और भक्तों के दुखों का नाश करने वाले भगवान विष्णु जी की शरण में जाने को कहा, भगवान शिव जी के वचन अनुसार सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे और भगवान विष्णु जी को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे। इंद्रदेव के द्वारा स्तुति सुन भगवान विष्णु जी इंद्रदेव की सारी बाते समझ गए। मुर नामक दैत्य इतना शक्तिशाली और भयानक था, जिसने सभी देवताओं को जीत लिया था। भगवान विष्णु जी के पूछे जाने पर इंद्रदेव ने कहा “प्राचीन समय में नाड़ीजंघ नामक राक्षस था जिसका एक पुत्र मुर नमक दैत्य है जो बहुत लोकविख्यात व पराक्रमी है। वह चंद्रावती नामक नगरी का निवासी है उस दैत्य ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकालकर अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण यम, वायु, ईश, चंद्रमा नेऋतु आदि सभी के स्थान पर अपना अधिकार बना लिया है।” इंद्रदेव के इतना कहते ही भगवान विष्णु जी ने सभी देवताओं को चंद्रावती नगरी भेज दिया, उस समय मुर राक्षस अपनी सेना के साथ युद्ध भूमि में घोर गर्जना के साथ दहाड़ लग रहा था। उसकी गर्जना से देवता भी घबरा रहे थे जैसे ही भगवान विष्णु स्वयं रणभूमि में आए, तो मुर राक्षस ने अपनी सेना के साथ भगवान विष्णु पर भी आक्रमण कर दिया। भगवान विष्णु ने सभी को अपने बाणों से बींध कर दिया कहते हैं मुर नामक दैत्य के साथ भगवान विष्णु का 10000 वर्ष तक घोर युद्ध हुआ था। लंबे समय तक युद्ध के कारण भगवान विष्णु थककर बद्रिकाश्रम पहुंचे और हेमवती नामक गुफा में प्रवेश कर गए। हेमवती नामक गुफा बहुत ही सुंदर तथा 12 योजन लंबी थी, मुर नामक राक्षस भी उनके पीछे-पीछे हेमवती गुफा तक आ पहुंचा। जैसे ही उसने भगवान विष्णु को निद्रा में देखा तो भगवान विष्णु को मारने के लिए बहुत उत्सुक हुआ।  तभी भगवान के शरीर से तेज उज्जवल कांतिमय रूप वाली एक देवी प्रकट हुई और उन देवी ने मुर नामक दैत्य को मार दिया। जैसे ही श्रीहरि भगवान विष्णु जब योग निद्रा की गोद से उठे, तो उन्हें देवी की सभी लीला का ज्ञान हुआ और देवी से कहा, कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है अतः आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूज्य होगी और आपके वही भक्त होंगे जो मेरे भक्त होंगे। तभी से सभी भक्तों के द्वारा उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है।

दोस्तों, आपको उत्पन्ना एकादशी के विषय में कौन सी जानकारी अच्छी लगी, यदि हमारे द्वारा लिखे लेख में कोई जानकारी रह गई हो तो आप हमे नीचे कमेंट करके जरूर बताएं या आपको हमारे लेख के माध्यम से कुछ नया प्राप्त हुआ है तो वह भी आप हमसे साझा काट सकते है

धन्यवाद

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