Lohri Kab Manaya Jata Hai | लोहड़ी के त्योहार पर क्या होता है

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माघ संक्रांति से पहली रात सूर्यास्त के बाद पौष मास के अंतिम दिन को सिक्ख धर्म में लोहड़ी पर्व कहते हैं। यह सिख धर्म का एक विशेष त्यौहार है जिसे प्राय 13 जनवरी या 14 जनवरी आसपास मनाया जाता है। इस वर्ष लोहड़ी का त्यौहार 14 जनवरी 2024 दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस पर्व को मुख्य रूप से पंजाब का पर्व माना जाता है। भारत के अलग-अलग शहरों में मकर संक्रांति के दिन और उसके आसपास के दिनों में कई त्योहार मनाए जाते हैं जो मकर संक्रांति के ही दूसरे रूप हैं। उन्ही में से एक त्यौहार है लोहड़ी जिसे पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है लोहड़ी को पहले तिलोडी कहा जाता था यह शब्द तिल और रोड़ी शब्दों के मेल से बना था जो समय के साथ बदलकर अब लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। पंजाब के कई इलाकों में लोहड़ी को लोही या लोई भी कहा जाता है।

लोहड़ी का पर्व बसंत के आगमन के साथ पौष महीने की आखिरी रात को मनाया जाता है इसके अगले दिन माघ महीने की संक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार तिथि अनुसार आगे पीछे होता रहता है यह कभी 13 जनवरी तो कभी 14 जनवरी को मनाया जाता है और 2024 में 14 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। 

लोहड़ी क्या है (Lohri Kya Hai)

सिक्खों के समुदायों का सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक लोहड़ी का पर्व है जिसे 14 जनवरी 2024 दिन रविवार को मनाया जाएगा। लोहड़ी पर्व की सबसे अधिक धूम पंजाब और  हरियाणा में ही देखने को मिलती है हालाकि दिल्ली के कई इलाकों में भी लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।लोहड़ी का पर्व कृषि और प्रकृति को समर्पित है, इस दिन किसान अपनी नई फसलों को अग्नि को समर्पित करते हैं और सूर्य देव भगवान को धन्यवाद अर्पित करते है। लोहड़ी का त्योहार सुख समृद्धि और खुशियों का प्रतीक माना जाता है, लोग इस प्यार को बड़े ही प्यार से मिलजुल कर मनाते हैं और साथ में खुशियों के गीत भी गाते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी का पर्व पौष माह की आखिरी रात में मनाया जाता है सिखों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। माना जाता है लोहड़ी त्यौहार की शुरुआत कुछ दिन पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं, और विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार का प्रचलन है। लोहड़ी के बाद से दिन बड़े होने लगते हैं यानी कि माघ मास का प्रारंभ हो जाता है। 

लोहड़ी कब है। (lohri Kab Hai)

हिंदू पंचांग के अनुसार लोहड़ी पौष मास की अंतिम दिन की रात्रि के समय मनाया जाता है इस वर्ष 14 जनवरी दिन रविवार 2024 को मनाया जाएगा। सिक्ख समुदायों द्वारा लोहड़ी पर पवित्र अग्नि जलाकर उसकी विधि विधान के साथ पूजा करी जाती है। लोहड़ी वाले दिन दुल्ला भट्टी को याद करके उनके गीत गाए जाते हैं। 

लोहड़ी पर क्या होता है। (lohri Par Kya Hota Hai)

सिक्ख समुदायों द्वारा पौष माह के अंतिम दिन रात्रि के समय लोहड़ी जलाने का विधान है, इसे ठीक होलिका दहन की तरह ही मनाया जाता है। लोहड़ी के बाद से प्रकृति में कई बड़े-बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं, ऐसा माना जाता है की लोहड़ी की जो रात होती है वह साल की सबसे लंबी रात होती है इसके बाद धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं। मौसम फसलों के अनुकूल होने लगते हैं इसलिए इसे मौसमी त्यौहार भी कहा जाता है। लोहड़ी का मतलब ला से लकड़ी, ओह से गोहा (जलते हुए सूखे कंडे) और डी से रेवड़ी अर्थ होता है। लोहड़ी वाले दिन मूंगफली, तिल, गुड़, गजक, चिड़वे और मक्के को लोहड़ी की आग पर से उतार कर पहनने की परंपरा है। जिस प्रकार हम होली की परिक्रमा देते हैं ठीक उसी प्रकार सिख समुदाय द्वारा लोहड़ी का उत्सव मनाया जाता है और परिक्रमा दी जाती है।

लोहड़ी क्यो मनाते है ( Lohri Kyo Manate Hai)

लोहड़ी का पर्व पारंपरिक तौर पर फसल की कटाई और नई फसल के बुआई से जुड़ा हुआ है। लोहड़ी वाले दिन लोहड़ी की अग्नि में तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड आदि चीजों को अर्पित करते हैं मान्यता है ऐसा करने से सूर्य देव और अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। सिख समुदाय द्वारा ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि सूर्य देव और अग्नि देव की ही कृपा से फसल अच्छी होती है, तथा आने वाली नई फसलों में कोई समस्या ना हो इसी को देखते हुए वह आभार व्यक्त करते हैं और उनका धन्यवाद कहते हैं। लोहड़ी का पर्व परिवार में आने वाले नए मेहमान जैसे की बहू, बच्चा और हर साल होने वाली फसल के स्वागत के लिए ही मनाया जाता है। क्योंकि एक किसान के लिए उसकी फसल भी उसके परिवार का एक अहम हिस्सा होता है। 

लोहड़ी की पौराणिक कथा (Lohri Ki Katha)

लोहड़ी के पर्व से संबंधित एक पौराणिक कथा है जो बहुत ही प्रसिद्ध है। कहा जाता है सिक्खों के समुदायों द्वारा लोहड़ी के दिन जो लोकगीत गाए जाते हैं वह दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र करते हैं। मान्यताओं के सानुसार ऐसा माना जाता है पंजाब में मुगल बादशाह अकबर के शासन के समय दुल्लभट्टी नाम का लुटेरा रहता था। दुल्ला भट्टी अमीर लोगों से धन लूटकर अक्सर गरीबों में बांट देता था, ऐसा करने से उसका सिर्फ एक ही मकसद था जो भी गरीब हिंदू, सिख परिवार होते थे उनकी लड़कियों के विवाह में मदद करने का था। मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल के समय जिन भी जमींदारों तथा शासको की बुरी नजर होती थी, या जिन्हें अगवा करके गुलाम बनाकर दासों के बाजार में बेच दिया जाया करता था, ऐसी लड़कियों के लिए दुल्ला भट्टी वर ढूंढता था और उनका कन्यादान स्वयं करता था। एक दिन दुल्ला भट्टी को सुंदरी और मुंदरी नाम की दो गरीब बहनों के बारे में पता चला, जिन्हें जमीदार अगवा करके अपने साथ ले गए थे। उस समय उन बहनों के चाचा उनकी रक्षा करने में असमर्थ थे, तब ऐसी स्थिति में दुल्ला भट्टी ने बहुत ही कठिनाइयों के बावजूद भी उनके लिए वर ढूंढा। लोहड़ी के दिन जंगल में से लकड़ी इक्कठा करके अग्नि के चारों ओर चक्कर काटकर उन बहनों का विवाह कराया और उनका कन्यादान किया। इस घटना के बाद से ही पूरे पंजाब में दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि दी गई, तब से लेकर आज तक पंजाब के नायक दुल्ला भट्टी को याद करके लोहड़ी वाले दिन सुंदर लोकगीत गाए जाते हैं और लोहड़ी मनाई जाती है। 

लोहड़ी को मनाने वाली परमपाएं 

वैसे तो लोहड़ी पंजाब और हरियाणा का ही प्रसिद्ध त्यौहार है लेकिन समय के साथ-साथ लोहड़ी को अब पूरे भारत देश में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा है। ऐसे ही लोहड़ी को मनाने की कुछ परंपराएं हैं जो निम्नलिखित हैं।

  • लोहड़ी वाले दिन किस ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि हो और कोई समस्या उत्पन्न न हो।
  • लोहड़ी के दिन पंजाब के कुछ इलाकों में पतंग भी उड़ाया जाता है।
  • लोहड़ी के दिन बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं और लोग उन्हें मिठाई और पैसे देते हैं।
  • लोहड़ी वाले दिन बच्चों को अपने घर से खाली हाथ लौट आना उचित नहीं माना जाता इसलिए उन्हें चीनी, गजक, गुड, मूंगफली तथा मक्का आदि दिया जाता है।
  • लोहड़ी की शाम सभी लोग एकत्रित होते हैं और आज चलते हैं और संगीत और नृत्य के साथ जश्न मनाया जाता है।
  • लोहड़ी के दिन रात्रि के समय सभी लोग इक्कठे होकर सरसों का साग, मक्के की रोटी और खीर आदि। सांस्कृतिक भोजनों का लुफ्त उठाते हैं।

लोहड़ी का महत्व (Lohri Ka Mahatva)

हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले पंजाब तथा सिक्के समुदाय द्वारा विशेष रूप से लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है सिक्ख समुदायों में जिस घर में बच्चे का जन्म होता है या नई शादी हुई होती है उनके लिए विशेष रूप से लोहड़ी का महत्व होता है। लोहड़ी में सिक्ख किसानों रवि की फसलों को काटकर घर में लाया जाता है साथ ही जश्न मनाया जाता है। 

दोस्तों आपको हमारे द्वारा लिखा गया लेख कैसा लगा आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं साथी आप के शहर में लोहड़ी कैसे मनाई जाती है यह भी आप हमें अवश्य बताएं।

धन्यवाद 

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