Devshayani Ekadashi 2023: देवशयनी एकादशी प्रदीप मिश्रा के उपाय

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नमस्कार दोस्तों आप सभी लोग शायद जानते होंगे की 29 जून 2023 को देवशयनी एकादशी पढ़ रही है और इस दिन का बहुत ही विशेष महत्व होता है क्योंकि इस दिन हमारे देव सो जाते हैं और देवशयनी एकादशी के बाद से कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य होना भी बंद हो जाते हैं। आज इस लेख में हम आपको देवशयनी एकादशी की संपूर्ण जानकारी देंगे। साथ ही में पंडित प्रदीप मिश्रा जी द्वारा बताए गए देवशयनी एकादशी के विशेष उपाय भी बताएंगे।

देवशयनी एकादशी कब की हैं 2023

इस साल देवशयनी एकादशी आषाढ़ की महीने में शुक्ल पक्ष में 29 जून 2023 को पढ़ रही हैं।

देवशयनी एकादशी समय

देवशयनी एकादशी तिथि 29 जून 2023 को 9:59 PM पर हो जाएगी और समाप्ति 30 जून 2023 को 7:17 PM पर हो जाएगी।

देवशयनी एकादशी व्रत पारण का समय 29 जून 5:36 AM से 8:21 AM तक रहेगा।

देवशयनी एकादशी का दूसरा नाम क्या हैं

देवशयनी एकादशी का दूसरा नाम देवपद एकादशी, पद्मा एकादशी, शयनी एकादशी महा एकादशी और आषाढी एकादशी के नाम से भी जानी जाती हैं।

देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती हैं

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व बहुत बड़ा होता हैं। हर साल 24 एकादशियां होती हैं और जब अधिक मास या मलमास आता हैं तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं।आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता हैं।

धर्म शास्त्रों के अनुसार अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंख और दैत्य मर गया था। उसी दिन से आरंभ करके भगवान 4 मार्च तक शरीर समुद्र में सायं करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जगाते हैं। पुराणों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बली के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया था। अगले पग में संपूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया था। तीसरे पग में बाली ने अपने आप को समर्पित करते हुए सर पर पग रखने को कहा था। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोग का अधिपति बना दिया था और कहा कि वर मांगो।

बली ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहे बल्कि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बाली को भाई बना लिया और भगवान से बली को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता चार-चार महा सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिव जी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।

देवशयनी एकादशी का महत्व क्या हैं

देवशयनी को सौभाग्य की एकादशी भी कहा जाता है पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास रखने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती हैं इस दिन पूरे मन और नियम से पूजा करने से महिलाओं को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।

देवशयनी एकादशी के उपाय प्रदीप मिश्रा

देवशयनी एकादशी के दिन आप कई सारे उपाय कर सकते हैं जिनमें से कुछ विशेष उपाय के बारे में हम आपको बताते हैं जिनसे आपके जीवन से सारी दुख और समस्याएं दूर हो जाएंगे।

इस दिन आपको देवशयनी एकादशी के दिन प्रातःकाल सुबह-सुबह भगवान शिव जी के मंदिर जाना हैं। आप अपने साथ भगवान शिव जी की पूजन अर्चना के लिए जो सामग्री लेकर जाना चाहे वह लेकर जा सकते हैं। साथ ही में एक लोट जल विशेष रूप से आपको लेकर जाना हैं।

भगवान शिव जी की पूजन अर्चना करने के बाद शिव जी के ऊपर एक लोटा जल चढ़ाने के बाद आपको इस उपाय को करना हैं।

इसके लिए आप भगवान शिव जी के पास में बैठ जाइए। बैठने के बाद अपने हाथों को जोड़ लीजिए और आंखें बंद कर लीजिए और अब हम आपको एक नाम बता रहे हैं उस नाम का उच्चारण आपको तीन बार करना हैं।

वह नाम है “स्वाधा

स्वधा नाम पार्वती जी की नई का नाम है और जो व्यक्ति एकादशी व्रत के दिन भगवान शिव जी के पास में बैठकर स्वाधा नाम का तीन बार उच्चारण कर लेता हैं भगवान शिव के जीवन से सारी दुख और समस्याएं दूर कर देते हैं।

यहां पर ये उपाय पूरा हो जाता है और यह उपाय सिर्फ एक ही व्रत के दिन ही करना हैं।

देवशयनी के दिन क्या खाना चाहिए

देवीशयनी एकादशी व्रत के दिन आपको शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए। अपने चाहे व्रत रखा हो चाहे ना रखा हो। जिस व्यक्ति ने देवशयनी एकादशी का व्रत रखा हो उसे कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. देवशयनी एकादशी के दिन गलती से भी चावल नहीं खाना चाहिए।
  2. देवशयनी एकादशी के दिन आप एक समय फलहार कर सकते हैं।
  3. इस दिन प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा, चावल, गेहूं, दाल और फलियां नहीं खाना चाहिए।
  4. शराब और तंबाकू का भी सेवन नहीं करना हैं।
  5. इस दिन आप फल, दूध और व्रत में लिए जाने वाले जान ले सकते हैं।

देवशयनी एकादशी के दिन कौनसे मंत्र का जाप करें

देवशयनी एकादशी के दिन आपको “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी को क्या करना चाहिए

देवशयनी एकादशी को आपको दान पुण्य जरूर करना चाहिए। जैसे कि आप किसी को अन्न का दान कर सकते हैं, जल का दान कर सकते हैं या कोई भी आवश्यक वस्तुएं भी दान कर सकते हैं। इस दिन दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं।

देवशयनी एकादशी पूजन विधि

  1. इस दिन आपको सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सुबह-सुबह एक बाल्टी पानी में गंगा जल की कुछ बूंदें डालकर उससे स्नान कर लेना चाहिए।
  2. उसके बाद में आपको शुद्ध और साफ वस्त्र पहन लेना चाहिए।
  3. मिट्टी या पीतल के दीपक में तिल का तेल, सरसों का तेल या घी से जला लेना चाहिए और वेदी पर रख देना चाहिए।
  4. उसके बाद में आपको भगवान गणेश जी की पूजन करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए और भगवान विष्णु जी का आवाहन भी करना चाहिए।
  5. भगवान विष्णु जी को जल, पुष्प, इत्र, दीप, धूप और नैवेद्य चढ़ा देना चाहिए और “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।
  6. फिर पान, सुपारी, आधा टूटा हुआ नारियल, केले और अन्य फल और चंदन, हल्दी, अक्षत और दक्षिण से युक्त तंबूलम समर्पित करें।
  7. फिर देवशयनी एकादशी व्रत की कथा पढ़ें।
  8. फिर भगवान विष्णु जी की आरती करके पूजा समापन करें।
  9. उसके बाद आप भगवान विष्णु जी के “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का भी जब कर सकते हैं।
  10. उसके बाद में आप कुछ दान पुण्य भी कर सकते हैं।
  11. शाम को सूर्यास्त के दौरान आपको तेल का दीपक और सुगंधित धूपबत्ती भी जरूर लगानी हैं और भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी है।
  12. भगवान को घर पे बने हुए मीठे व्यंजन या फलों का भोग लगाएं।
  13. रात्रि में एक बार फिर से भगवान विष्णु जी की आरती करें।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा हे केशव आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है इस व्रत की करने की विधि क्या हैं और किस देवता का पूजन किया जाता हैं? श्री कृष्णा कहने लगे की हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं।

एक बार देवर्षि नारद जी ने ब्रह्मा जी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया सतयुग में मेदांता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए यह कोई नहीं जानता। अतः वे सभी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला हैं।

उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा इस काल से चारों ओर त्राहि त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ हवन पिंडदान कथा व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्य में प्राणी की रुचि कहां रह जाती हैं। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई थी।

राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुखी थे। वह सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप-कर्म किया हैं जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।

वहां विचरण करते-करते 1 दिन में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया ऋषि भर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल श्रम पूछा फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा: महात्मन! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूं‌ आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा हैं, कृपया इसका समाधान बताएं।

यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सभी युगों से उत्तम यह सतयुग हैं। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता हैं।

इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता हैं। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तब करने का अधिकार नहीं हैं जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा हैं। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही हैं। जब तक वह कल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति से मरने से ही संभव हैं।

किंतु राजा का हृदय एक न पराध शुद्ध तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा: हे देव मैं उसे निरपराध को मार दूं, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा हैं। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएं।

महर्षि अनघिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।

राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा (देवशयनी) एकादशी का विधि पूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन धन्य से परिपूर्ण हो गया।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महात्माय का वर्णन किया गया हैं। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

हमें आशा है हमने आपके प्रश्नों के सारे उत्तर हमारे लेख में दे दिए होंगे। अगर अभी भी आपके मन में इस देवशयनी एकादशी को लेकर कोई प्रश्न आ रहा हैं तो उसे आप बेझिझक होकर हमसे कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं आपको आपका जवाब मिल जाएगा।

धन्यवाद

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