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कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हम आंवला नवमी के नाम से जानते हैं, आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार आंवला नवमी के दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान माना गया है। आपको बताएं कि आंवला नवमी को किए गए कार्यों से मनुष्य को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है इसलिए इसे अक्षर नवमी भी कहा जाता है। आंवला नवमी के दिन महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति तथा अपनी संतान की रक्षा के लिए पूजा अर्चना करती हैं, हिंदू पुराणों तथा मान्यताओं के अनुसार पूरे कार्तिक मास में पवित्र नदियों में स्नान का महत्व माना गया है परंतु आंवला नवमी को स्नान करने पर अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। इस वर्ष आंवला नवमी 21 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।
नाम | आंवला नवमी (अक्ष्य नवमी) |
उत्सव | आवंला वृक्ष पूजन |
आरम्भ | 21 नवंबर सुबह 3 बजकर 16 मिनिट पर |
समापन | 22 नवंबर रात 1 बजकर 8 मिनिट पर |
आंवला नवमी (अक्षय नवमी) क्या है (What is anvala navami)
हमारे शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी कहा जाता है। आंवला नवमी को बहुत महत्वपूर्ण दिन माना गया है, यह तिथि प्रत्येक वर्ष दीपावली के बाद पढ़ने वाली नवमी तिथि को मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है, अक्षय एक संस्कृत का शब्द है जिसे हमारे धर्म में सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। आंवला नवमी पर महिलाएं आवंला के वृक्ष का पूजन करती हैं
इसे बड़े श्रद्धा पूर्वक किया जाता है आंवला नवमी पर पूजा स्नान दान करने से व्यक्ति की जीवन में बढ़ोतरी और उन्नति होती है, यही कारण है कि आंवला नवमी का विशेष महत्व माना गया है। अगर हम पुरातन समय की बात करें तो आंवला नवमी से ही सतयुग की शुरुआत हुई थी जिसे हम सत्ययुगादी के नाम से भी जानते हैं, यहां तक कि हमारे शास्त्र और बड़े विद्वान पंडितों का कहना है आंवला नवमी के दो दिन बाद श्रृष्टि के पालन हार भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, जिससे आंवला नवमी का महत्व अधिक माना जाता है। आंवला नवमी के दिन आंवले को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। पुरातन समय में आज ही के दिन भगवान विष्णु द्वारा कुष्मांडा राक्षस का उद्धार हुआ था जिसे हम कुष्मांडा नवमी भी कहते हैं।
आंवला नवमी का महत्व
हिंदू त्योहार तथा व्रत का अपना अलग ही महत्व माना गया है सभी व्रत की पूजा का अपना अलग-अलग फल बताया गया है। आंवला नवमी का भी विशेष महत्व माना जाता है कहा जाता है इस दिन कई स्थानों पर आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती हैं, इस वर्ष यह तिथि 21 नवंबर को मनाई जाएगी। मान्यता के अनुसार आंवला नवमी आंवले के वृक्ष की पूजा के लिए विशेष दिन माना जाता है क्योंकि प्राचीन समय से कहा जाता है, आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है। इस दिन भक्तों की हर मनोकामना भगवान विष्णु पूर्ण करते हैं अगर हम आंवला को स्वास्थ्य के नजरिए से देखें तो आंवले के फल में पोषक तत्वों का भंडार होता है। जहां विष्णु भगवान का वास होता है वही इस वृक्ष को बहुत ही अच्छा माना गया है आंवला नवमी प्को दान पुण्य करने से भक्तों के जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है तथा उनका जीवन सौभाग्यशाली भी होता है।
आंवला नवमी की कथा
हिंदू त्योहारों की अपनी अलग कथा मानी जाती है आज हम आपको इस लेखन के माध्यम से आंवला नवमी की कथा का विश्लेषण बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर निवास करने के उपरांत भगवान शिव जी तथा भगवान विष्णु दोनों की पूजा करना चाहती थी, किंतु यह असंभव तो नहीं था लेकिन संभव भी बड़ा कठिन था। मां लक्ष्मी के द्वारा बहुत ही विचार विमर्श हुआ कि एक साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तब मां लक्ष्मी को ध्यान आया कि तुलसी और बैल के जो भी गुण है वह एक साथ आंवले के वृक्ष में पाए जाते हैं, और आंवले का वृक्ष भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का प्रतीक माना जाता है। यहां तक तुलसी तो भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय है और भगवान शिव को बेल बहुत प्रिय है। तत्पश्चात मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष कोविष्णु भगवान और शिव जी का प्रतीक मानकर आंवले के वृक्ष की पूजा की, मां लक्ष्मी के द्वारा की गई पूजा से भगवान विष्णु और भगवान शिव जी इतने प्रसन्न हुए की तुरंत ही मां लक्ष्मी के सामने प्रकट हो गए। मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु और भगवान शिव जी को भोजन कराया। भोजन करने के बाद उन्होंने स्वयं कुछ ना खाया जिस दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु तथा भगवान शिव जी के द्वारा यह लीला की गई, वह दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष कि नवमी तिथि थी। तब से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है और इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।
आंवला नवमी पूजा विधि:–
- सर्वप्रथम आंवला नवमी पर प्रातः काल सुबह जल्दी उठ जाएं, उठने के बाद आप स्नान आदि से निवृत हो जाएं। स्नान निवृत होने के बाद ही व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- स्नान पश्चात आप आंवले का वृक्ष देखिए आपके घर के आसपास जहां आवाले का वृक्ष है उसके नीचे बैठ जाएं।आपको आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठना है। उसके बाद “ओम धात्रे नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए आंवले के वृक्ष पर दूध की धार को गिराना है।
- इतना करने के बाद आपको एक कपूर लेना है और घी का दीपक तैयार करना है तथा घी का दीपक प्रदक्षिणा करें अवल वृक्ष की आप 108 परिक्रमा भी करें।
- पूजा अर्चना करने के बाद आप पूरी,सब्जी का भोग लगाए यदि कोई मिष्ठान आपके पास उपलब्ध है तो उसका भी आप भोग अवश्य लगाएं।
- यदि आपने आंवला नवमी व्रत संकल्प लिया है तो आप आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराय तथा उन्हें प्रेम पूर्वक दक्षिण भेंट करें।
आंवला नवमी पर क्या करना चाहिए
- भक्तों को आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की आराधना करना चाहिए। कहते हैं आंवले के वृक्ष पर मां लक्ष्मी,भगवान विष्णु तथा भगवान शिव जी का वास रहता है।
- आंवला नवमी के दिन भक्तों को आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन पकाना चाहिए तथा स्वयं करना चाहिए और विद्वान ब्राह्मणों को भी करना चाहिए जिससे भगवान विष्णु का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।
- यदि आप आंवला नवमी का व्रत करते हैं तो आपको भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें भोग में आवंला जरूर चढ़ाना चाहिए।
- आंवला नवमी पर दान करने का विशेष महत्व होता है आंवला नवमी के दिन दान करने से धन संपदा और सुख शांति में बढ़ोतरी होती है।
- आंवला नवमी एक प्रकार से विशेष दिन है कहा जाता है कि इस दिन आवाले का सेवन किया जाए तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है।
अगर अभी भी आपके मन में कोई भी प्रश्न है तो उसे आप हमसे कमेंट करके पूछ सकते हैं।
धन्यवाद