Vaikuntha chaturdashi kab hai | बैकुंठ चतुर्दशी कब है, चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है, पूजा की विधि 

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नमस्कार दोस्तों, जैसा कि आप सभी हमारे आज के आर्टिकल के विषय को देखकर समझ ही गए होंगे कि आज हम आपको  किस विषय पर बताने वाले है, तो चलिए बिना किसी बात की देर की यह शुरू करते हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी को एक पवित्र दिन भी माना जाता है जो की ठीक कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले मनाई जाती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र दिन माना जाता है। आपको जानकर खुशी होगी भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों का ही बैकुंठ चतुर्दशी से गहरा संबंध माना गया है। अन्यथा बहुत ही कम ऐसा देखने को मिलता है कि भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की एक साथ पूजा भक्तों द्वारा एक ही दिन की जाए। प्राचीन समय की नगरी कही जाने वाली वाराणसी के अधिकांश मंदिरों में बैकुंठ चतुर्दशी धूमधाम से मनाई जाती है। वही बात करें तो ऋषिकेश और महाराष्ट्र जैसे शहरों में भी भक्तो के द्वारा बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी का पवित्र त्यौहार 25 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। वैकुंठ चतुर्दशी को एक पावन पवित्र दिन के रूप में माना जाता है तो हम इसको आगे विस्तार से जानेंगे।

नाम बैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha chaturthi)
प्रारंभ 25 नवंबर 17:22 मिनिट से
समापन 26 नवंबर 15:53 मिनिट तक 
दिन शनिवार 

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

जैसा कि ऊपर हमने आपको बताया है कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पढ़ने वाला यह पर्व बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी को शैव तथा वैष्णव दोनों के लिए समान रूप से पवित्र माना जाता है। शैव जो कि भगवान शिव के उपासक होते हैं तथा वैष्णव जो कि भगवान विष्णु के उपासक होते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु तथा भगवान शिव की पूजा अर्चना बड़ी श्रद्धापूर्वक उनके भक्तों के द्वारा की जाती है तथा उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी को वाराणसी, ऋषिकेष सहित पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विद्वान ज्योतिषी के अनुसार  व्रत और पूजा पाठ करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। बैकुंठ चतुर्दशी पर निशिता मुहूर्त के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के हजार नाम, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है। पाठ करने के साथ-साथ भगवान विष्णु को 1000 कमल के पुष्प चढ़ाए जाते हैं साथ ही बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु तथा भगवान शिव दोनों की ही पूजा अलग-अलग समय पर होती है। भगवान विष्णु के भक्त निशिता मुहूर्त में पूजा करते हैं तो वहीं निशिता मुहूर्त में पूजा करना अत्यधिक शुभ मानते हैं। भगवान शिव के भक्त अरुणोदय मुहूर्त में पूजा करना अत्यधिक शुभ मानते हैं यदि आप इन मुहूर्त में पूजा करते हैं तो आपको भगवान की विशेष कृपा का फल अवश्य प्राप्त होगा।

बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा कैसे करें

हिंदू त्योहारों की पूजा करने का एक अलग नियम, अलग विधि तथा मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा करने के लिए आपको विधि का ध्यान रखना आवश्यक होता है,चलिए हम आपको इसके बारे में थोड़ा विस्तार से बताएंगे।

  • सर्वप्रथम आपको बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना है,स्नान के बाद ही आप व्रत का संकल्प लें।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन व्रत कर रहे हैं सभी भक्तों को इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि एक बार संकल्प लेने के बाद बैकुंठ चतुर्दशी के दिन अन्न का सेवन नहीं कर सकते हालांकि थोड़ा बहुत फलहार कर सकते हैं।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के भक्तों को रात्रि समय निशिता मुहूर्त में श्री हरि विष्णु भगवान की कमल के पुष्पों से पूजा करें पूजा करते समय उनके मंत्र का जाप करें।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आप अपने पास के किसी भी  भगवान विष्णु के मंदिर तथा भगवान शिव के मंदिर में जरूर जाएं। वहां आप उन्हें फल, फूल, माला, धूप,दीपक इत्यादि अर्पण करें।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आप भगवान विष्णु के महामंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय तथा भगवान शिव के महामंत्र ओम नमः शिवाय का जाप अधिक से अधिक करें।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सभी भक्तों को यथाशक्ति अनुसार दान पुण्य करना चाहिए।
  •  बैकुंठ चतुर्दशी की रात्रि पर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के पश्चात अगले दिन सुबह अरुणोदय मुहूर्त में भगवान शिव जी की पूजा भी जरूर करना चाहिए।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आप अपनी इच्छा के अनुसार ब्राह्मण तथा गरीबों को भोजन कर सकते हैं।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आपको ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही अपना उपवास खोलना है।
  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आपको दीपदान अवश्य करना है इस दिन आप गंगा जी का स्नान भी जरूर करें।

बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा के लाभ

पुराणों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन दान तथा भगवान के मंत्र जाप करने से भक्तों को 10 यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। यदि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन कृतिका नक्षत्र हो तो ऐसे दिन यह महाकार्तिकी  होती है या फिर हम बात करें भरणी नक्षत्र की तो फिर बैकुंठ चतुर्दशी विशेष फलदाई होती है। प्राचीन समय देव ऋषि नारद जी ने जब भगवान विष्णु से सर्व सरल भक्ति कर जन्म मरण से मुक्ति पाने का मार्ग पुछा। तब भगवान श्री हरि विष्णु जी ने कहा जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विधिपूर्वक व्रत रखते हैं तथा भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना विधिपूर्वक करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी व्रत की पूजा के बाद कथा सुनने को भी आवश्यक माना गया है बैकुंठ चतुर्दशी के दिन बैकुंठ चतुर्दशी की कथा सुनने मात्र से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन आप भगवान शिव की विशेष कृपा पाने के लिए शिवजी का रुद्राभिषेक भी कर सकते हैं तथा भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा पाने के लिए आप उनकी भी पूजा स्नेहपूर्वक श्रद्धा पूर्वक कर सकते हैं। अब हम आगे बैकुंठ चतुर्दशी की कथा को भी थोड़ी विस्तार से समझेंगे।

बैकुंठ चतुर्दशी की कथा

शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी की कथा काफी प्रचलित मानी जाती है इस लेखन के माध्यम से हम आपको बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं। एक बार श्री हरि विष्णु भगवान देवों के देव महादेव भगवान शिव जी का पूजन करने काशी पहुंचे। काशी पहुंचते ही भगवान विष्णु ने सुप्रसिद्ध घाट मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया। स्नान करने के पश्चात उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्प से भगवान शंकर की पूजा का संकल्प लिया।  भगवान श्री विष्णु द्वारा विश्वनाथ जी के मंदिर में जब पूजा करना प्रारंभ हुई तब भगवान शिव द्वारा भगवान विष्णु की परीक्षा ली गई और भगवान शिव जी ने कमल पुष्प में से एक पुष्प कम कर दिया। भगवान विष्णु ने 1000 पुष्पों को भेंट करने का संकल्प लिया था लेकिन उन्होंने जब देखा तो एक पुष्प कम पाया इसके बाद बाहर विचलित हो उठे। तत्पश्चात् भगवान विष्णु ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल के पुष्प के समान है।  भगवान विष्णु का एक नाम कमल नयन भी है। इस विचार के बाद भगवान विष्णु ने स्वयं की आंख अर्पण करने का निर्णय किया। भगवान विष्णु की इस भक्ति को देख भगवान शिव वहां प्रसन्न होकर तुरंत प्रकट हो गए और भगवान विष्णु से “हे विष्णु तुम्हारे समान इस पूरे संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं हो सकता इसलिए आज मैं तुम्हें वचन देता हूं कि जो भी बैकुंठ चतुर्दशी के दिन तुम्हारी पूजा करेगा वह बैकुंठ लोक को प्राप्त होगा”  इतना ही नहीं भगवान विष्णु की भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने करोड़ों सूर्य के समान चमकने वाले सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया। तब से ही भक्ति के द्वारा स्नेह श्रद्धा पूर्वक बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत का पालन किया जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी एकमात्र ऐसा दिन माना जाता है जब भगवान विष्णु को वाराणसी के मुख्य  शिव मंदिर तथा काशी के विश्वनाथ मंदिर में सम्मान दिया जाता है और यहां तक ऐसा माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन दोनो मंदिर बैकुंठ के समान पवित्र हो जाते है। यदि आप भी इस व्रत का पालन करते हैं तो आपको हमारे इस आर्टिकल से सारी जानकारियां प्राप्त हो गई होगी और हम आशा करते हैं आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।

धन्यवाद 

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