Dev deepawali kab hai, देव दिपावली क्या होती है, देव दिपावली पर क्या करे, देव दिपावली का महत्व

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प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा को हमारे हिंदू धर्म में देव दिपावली के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दिपावली को कार्तिक माह की अमावस्या को मानने वाली दिपावली की तरह ही मनाया जाता है। देव दिपावली का महत्व भी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की दीपावली के समान माना जाता है। देव दिपावली को दीपक का त्यौहार भी कहा जाता है, देव दिपावली का यह पर्व दिवाली के 15 दिन बाद मनाया जाता है। देव दिपावली को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार देव दिपावली के दिन सभी देवता काशी की पवित्र धरा पर उतरते हैं और सभी देवता मिलकर दिपावली मनाते हैं, इसलिए ऐसे देव दिपावली भी कहा जाता है। प्राचीन समय से ही देव दिपावली पर काशी के सभी घाटों पर दीपक सजाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार तीनों लोकों की सबसे सुंदर नगरी काशी में देव दिपावली की शाम इंद्रधनुष घटा निखरती है। मां गंगा का अर्धचंद्राकर स्वरूप भी देवताओं के आगमन से दमक उठता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा से जागते है, भगवान भगवान विष्णु के निद्रा से जागने की खुशी में सारे देवता धरती पर बनारस के घाटों पर दीप उत्सव मनाते हैं, जिसे देव दिपावली के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल की एक मान्यता यह भी है कि देव दिपावली के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के असुर का वध कर काशी को राक्षस के पास से मुक्त किया था।

देव दिपावली कब है

हमारे सनातन धर्म में कार्तिक माह का महीना सबसे पवित्र महीनो में से एक  माना जाता है। कार्तिक माह में सबसे ज्यादा बड़े-बड़े त्यौहार आते हैं, कार्तिक माह की अमावस्या की तरह ही कार्तिक पूर्णिमा का भी बहुत ही खास महत्व माना गया है, जो दीपावली के ठीक 15 दिन बाद आता है। इसे हम देव दिपावली के नाम से भी जानते हैं,इस वर्ष देव दिपावली को लेकर लोगों में थोड़ा असमंजस देखने को मिल रहा है। कुछ लोगों का कहना है, देव दिपावली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी, जबकि कई जगहों पर लोगों का ऐसा मानना है कि देव दिपावली 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।

पंचांग अनुसार देव दिपावली 

हमारे हिंदू धर्म में किसी भी त्यौहार को मनाने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा पंचांग तैयार किए गए है। इन पंचांगों को ज्योतिष गणना अनुसार तैयार किया गया है। पंचांग अनुसार इस वर्ष यह  देव दिपावली मनाने की तिथि 26 नवंबर दोपहर 3:53 पर शुरू होगी, जो 27 नवंबर दोपहर 2:45 पर समाप्त होगी। देव दिपावली का त्यौहार हिंदू धर्म में शाम के समय मनाया जाता है इसलिए इस वर्ष देव दिपावली का त्योहार 26 नवंबर 2023को मनाया जाएगा।

नाम देव दिपावली (कार्तिक पूर्णिमा)
तिथि प्रारंभ26 नवंबर 03:53 PM से 
तिथि समापन27 नवंबर 02:45 PM तक 

देव दिपावली क्यों मनाई जाती है

हमारे हिंदू धर्म में कार्तिक मास में तीन दिवाली आती है। सबसे पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी जिसे सभी छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं। इसके बाद कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बड़ी दिवाली मनाई जाती है, फिर आती है कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा जिसे देव दिवाली (देव दिपावली) के नाम से जाना जाता है। अब  हम जानेंगे देव दिपावली मनाने के कुछ कारण को जानेंगे।

  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को भगवान शंकर जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस राक्षस का वध किया था, तब से ही भगवान शंकर को त्रिपुरारी के नाम से भी जाना गया।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने सतयुग के समय मत्स्य अवतार लिया था।
  • कार्तिक पूर्णिमा की एक प्राचीन कथा द्वापर युग के समय से चली आ रही है, कहा जाता है इसी दिन भगवान कृष्ण को आत्म बोध हुआ था।
  • कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही माता तुसली का पृथ्वी पर प्राकट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी, अंगिरा जी, आदित्य आदि में महापुनीत प्रमाणित किया है।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सभी देवता यमुना में स्नान करने आते है तथा दीप जलाकर दिवाली मनाते है, जिसे देव दिपावली कहा जाता है।

देव दिपावली का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार जितना महत्व दीपावली का माना जाता है, उतना ही महत्व देव दिपावली का भी माना गया है। प्राचीन काल से सुना रहा है कि देव दिपावली के दिन सभी देवताओं का धरती की नगरी काशी में आना होता है, काशी आने के बाद वहां के घाटों पर दीप जलाकर दिवाली मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव जी ने काशी नगरी को त्रिपुरासुर नामक राक्षस से मुक्त कराया था, अब हम देव दिपावली के कुछ महत्व जानेंगे।

  • देव दिपावली कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है।
  • देव दिपावली के दिन आप अपनी क्षमता या इच्छानुसार दान पुण्य कर सकते हैं, ऐसा करने से आपको देवताओं की कृपा मिलेगी साथ ही मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।
  • देव दिपावली के दिन जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने से भगवान आपकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
  • देव दिपावली के दिन दीपदान करने का विशेष का महत्व माना गया है, इस दिन दीपदान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
  • देव दिपावली के दिन भगवान शिव जी की सच्चे मन से पूजा करनी चाहिए। सच्चे मन से पूजा करने पर भगवान शिव की कृपा आपके ऊपर सदैव बनी रहेगी।

देव दिपावली पूजा की सामग्री

  • घी का दीपक या तेल का दीपक
  • कपास की डिब्बी
  • पीला वस्त्र
  • मौली (2)
  • जनेऊ (2)
  • दुर्वा घास
  • बिल पत्र
  • फूल
  • इत्र
  • धूप
  • नैवेद्य
  • फल
  • हल्दी
  • कुमकुम(रोली)
  • चंदन
  • नारियल
  • पान 
  • सुपारी
  • गंगाजल
  • कच्चा दूध
  • दही
  • पंचामृत
  • शहर
  • कपूर

देव दिपावली की पूजा विधि

  • सर्वप्रथम देव दिपावली के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ धुले 

वस्त्र धारण करें।

  • सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल अर्पित करें।
  • अब आप लकड़ी की चौकी को एक स्वच्छ स्थान पर रखें। इतना करने के बाद चौकी पर पीला वस्त्र बिछाए।
  • लकड़ी की चौकी पर भगवान गणेश जी भगवान शिव जी तथा शिवलिंग को स्थापित करें।
  • तेल का या घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  • सर्वप्रथम भगवान गणेश जी की पूजा करें,उन्हें हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, मौली, जनेऊ और दुर्वा घास इत्यादि एक एक करके  अर्पण करें।
  • दो पान के पत्तों सुपारी और दक्षिणा अर्पित करें, इतना करने के बाद उन्हें भोग के रूप में फल अर्पित करें।
  • अब आपको भगवान शिव जी की पूजा करना है।
  • अब आप शिवलिंग को दूध, शहद, दही, घी व पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक कराएं तथा बाद में गंगाजल से अभिषेक करें।
  • अभिषेक करने के बाद चन्दन,मौली, जनेऊ, इत्र, फूल, बिलपत्र अर्पण करे।
  • उसके बाद दीपक प्रज्वलित कर नैवेद्य अर्पित करे।
  • भगवान शिव जी की धूप, कपूर का दीपक तैयार करके आरती कर पूजा समापन करे।

देव दिपावली की पौराणिक कथा

सनातन शास्त्रों के अनुसार, प्राचीन काल में एक त्रिपुरासुर नामक राक्षस हुआ करता था, उस राक्षस ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। त्रिपुरासुर नामक राक्षस से देवता भी घबराते थे, त्रिपुरासुर तारकासुर नामक राक्षस के तीन बेटे थे और तीनो राक्षसों ने देवताओं को परास्त करने की सौगंध ले रखी थी। त्रिपुरासुर राक्षसों ने काफी लंबे समय तक ब्रह्मा जी की तपस्या की थी, जिनकी तपस्या से ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर देवताओं से परास्त ना होने का वरदान उन्हें दिया था। ब्रह्मा जी के द्वारा मिले वरदान से त्रिपुरासुर अत्यधिक शक्तिशाली हो गए थे, कुछ समय बाद तीनों राक्षसों ने स्वर्ग के देवताओं पर आक्रमण कर दिया, जिसे देख देवता घबराकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें स्वर्ग की परिस्थिति के विषय में अवगत कराया।

ब्रह्मा जी के द्वारा मिले वरदान से सभी देवता उन तीनों राक्षसों को परास्त करने में असमर्थ थे, तब ब्रह्मा जी के कहने पर सभी देवताओं ने भगवान शिव से सहायता लेने का विचार बनाया क्योंकि भोलेनाथ ही सभी देवताओं की रक्षा कर सकते थे। तब सभी देवता अपनी परेशानी लेकर कैलाश पर्वत पहुंचे और महादेव से रक्षा की गुहार की।  देवताओं की गुहार से भगवान शिव ने कालांतर में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया, तभी से भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम से जाना जाने लगा।

जिसके बाद देवताओं ने दीप जलाकर दीपावाली मनाई। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दिपावली मनाई जाती है।

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