Putrada Ekadashi kab hai in hindi 2024, putrada Ekadashi ka vrat kaise kare, putrada Ekadashi ki puja vidhi, putrada Ekadashi vrat vidhi, putrada Ekadashi vrat Paran kaise kare, putrada Ekadashi kya hoti hai, (पुत्रदा एकादशी कब है 2024, पुत्रदा एकादशी का व्रत कैसे करे, पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि, पुत्रदा एकादशी के व्रत विधि, पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण कब करें, पुत्रदा एकादशी व्रत पारण, पुत्रदा एकादशी महत्त्व)
हमारे हिंदू धर्म मैंने एकादशी का बहुत देखना है तो मना जाता है जाता है एकादशी मनुष्य के जीवन से समस्त पापा का नाश करने के लिए मानी जाती है। प्रत्येक माह में दो बार एकादशी पड़ती है, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनो पक्षों में एक एक एकादशी आती है। पौष माह के शुक्ल पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। 2024 में पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी पर व्रत रखने से जातक पट भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है, और मनुष्य के जीवन से सभी पापों का नाम होता है। प्रतिवर्ष 24 एकादशी होती है जिन्हें अलग-अलग नाम से संबोधित किया जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, भगवान विष्णु का विधि पूर्वक व्रत किया जाता है और इसके अगले दिन द्वादश तिथि को व्रत का पारण किया जाता है। एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने से भगवान विष्णु जातक की जीवन की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है।
नाम | पुत्रदा एकादशी |
तिथि प्रारंभ | 20 जनवरी शाम 07 बजकर 27 मिनिट पर |
तिथि समापन | 21 जनवरी शाम 07 बजकर 27 मिनिट पर |
व्रत पारण समय | 22 जनवरी 07:13 AM से 09:23 AM तक |
पुत्रदा एकादशी क्या है
पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहते हैं, कई जगह इसे बैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी तिथि विशेषकर भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है, इस दिन भगवान विष्णु जी के भक्त विधि पूर्वक व्रत रखते हैं उन के भजन गाते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्व माना जाता है, इस दिन व्रत रखने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सभी एकादशीयों को अलग-अलग नाम से संबोधित किया जाता है पौष माह के शक्ल की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
पुत्रदा एकादशी कब है
2024 में पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। यह एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष को पढ़ने वाली एकादशी तिथि पर मनाई जाती हैं। मान्यता के अनुसार इस एकादशी को संतान से संबंधित माना जाता है इसलिए इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस दिन जो कोई भी मनुष्य सच्चे भाव से व्रत करता है उसके लंबे समय से रुके हुए काम भी पूरे होते हैं और साथ में सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।
पुत्रदा एकादशी कब आती है
दोस्तों वैसे तो वर्ष में 24 एकादशीयां आती है पर जिस वर्ष अधिकमास पढ़ता है, उस वर्ष इनकी संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है। प्रतिवर्ष साल में 2 पुत्रदा एकादशी पड़ती है पहली एकादशी श्रावण मास में आती है और दूसरी पौष मास में आती है। दोनों ही एकादशी का महत्व समान रूप से माना जाता है। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान सुख प्राप्ति होती है और उनका स्वास्थ भी अच्छा रहता है।
पुत्रदा एकादशी का व्रत कैसे करे
जिस प्रकार सभी एकादशी तिथि का व्रत किया जाता है ठीक उसी प्रकार पुत्रदा एकादशी का भी व्रत करते हैं। अब हम जानेंगे व्रत कैसे कर्म चाहिए।
- सर्वप्रथम एकादशी के दिन आप सुबह जल्दी उठे हैं और शुद्ध जल से स्नान कर ले।
- स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहन कर पूजा घर को भी शुद्ध कर ले।
- भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें।
- एकादशी कब दशमी तिथि सही प्रारंभ हो जाता है, जिस दिन आप सात्विक भोजन करें।
- एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए आप फलहार कर सकते हैं।
- एकादशी के व्रत का संकल्प लेने के बाद आपको द्वादश तिथि पर ही पारण करना है।
- द्वादश तिथि पर भी आप सात्विक भोजन करें।
पुत्रदा एकादशी के व्रत का महत्व
दोस्तों वैसे तो सभी एकादशी तीनों का अलग अलग महत्व है और अंकित करने का भी अलग अलग महत्व है। सभी एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है और सभी एकादशी की ऊपर विधि पूर्वक व्रत करने का अलग महत्व है आज हम पुत्रदा एकादशी के व्रत का महत्व जानेंगे जो इस प्रकार है।
- पुत्रदा एकादशी व्रत करने से जातक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- इस एकादशी के बच्चे उनके संतान की जीवन में तरक्की होती है और उनके स्वास्थ्य सही जुड़ी समस्यायों से निवारण मिलता है।
- इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है।
- इस दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
- पुराणों के अनुसार इस दिन दान पुण्य करने से जातक को हजारों वर्षों की तपस्या का फल होता है।
पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि
पुत्रदा एकादशी की पूजा ज्यादा कठिन नहीं है बहुत ही सरल है, विधि पूर्वक पूजा करने से ही आपको भगवान विष्णु और लक्ष्मी मां को कृपा आप पर बनी रहेगी। अब हम एकादशी की पूजा विधि के बारे में जानेंगे।
- पुत्रदा एकादशी को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करें।
- यदि आपके पास गंगा जल है तो पानी में थोड़ा गंगा जल मिलाकर नहाए।
- स्नान करने के बाद साहब वस्त्रों को धारण करें और श्री हरि भगवान विष्णु जी का ध्यान करें।
- भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने दीप जलाकर एक कलश की स्थापना करें।
- कलश स्थापना करने के बाद उसे लाल वस्त्र से बांध कर कलश की पूजा करे।
- भगवान श्री हरि विष्णु जी को शुद्ध जल से स्नान करवाएं और उन्हें नए वस्त्र पहनाएं।
- उसके बाद धूप, दीप, फल फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, आंवला अर्पित करे।
- एकादशी के दिन तुसली नही तोड़ी जाती किंतु आप भोग में तुलसी का पत्ता जरूर अर्पित करे।
- तुलसी के पत्ता एकादशी के पहले ही तोड़कर रख ले।
- अब भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करने के बाद आरती करे।
- आरती करने के बाद आप उन्हे नेवैद्य और फलों का भोग लगाएं।
- एकादशी की रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत का पारण कब करें
एकादशी का व्रत दशमी तिथि को शुरू किया जाता है और द्वादश तिथि पर उसका पारण किया जाता है। द्वादश तिथि को सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर आप व्रत पारण कर सकते हैं। आप द्वादशी तिथि को ब्राम्हणों को भोजन कराकर ही स्वयं भोजन करें।
एकादशी पर क्या करना चाहिए
एकादशी के दिन बहुत लोग सोचते है क्या करे क्या न करे तो हम आपको कुछ बाते बताएंगे जो खासकर एकादशी के व्रत के दिन कर्ण चाहिए।
- एकादशी के दिन ज्यादा से ज्यादा दान पुण्य करना चाहिए।
- एकादशी के दिन दीपदान करने भी बहुत महत्व माना जाता है।
- एकादशी के दिन जरूरत मंद की सहायता जरूर करें।
- एकादशी को रात्रि में जागरण जरूर करें इससे आपकी सभी मनोकामनापूर्ण होती है।
- एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए, आप फलहार ही करें।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक विशाल नगरी थी जिसमें महीजित नाम के राजा का राज्य था।
वह राजा पुत्रहीन था जिसके चलते उसे राज्य में सुख की प्राप्ति नही होती थी। राजा का ऐसा मानना था जिस की संतान नहीं होती उसके लिए लोक और परलोक दोनो ही दुखदायक होते है। पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए थे परंतु वह सफल न हो सका। राजा ने स्वयं की वृद्धावस्था आते देख प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहां मैने कभी अन्याय से धन नही कमाया, और न किसी देवी देवता और ब्राम्हण से धन छीना, किसी दूसरे का धन भी मैने नही चुराया अपनी प्रजा को पुत्र समान पालता रहा। कभी किसी से घृणा नही की सभी को एक समान माना सज्जनों को पूजा, धर्मयुक्त होने के बाद भी मेरा कोई पुत्र नहीं, में अत्यंत दुख पा रहा हूं इसका क्या कारण है। राजा महीजित की इस बात को सुनने के बाद मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गय और वहां बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के दर्शन किए। राजा की मनोकामना को पूरी करने के ले वह की श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देख रहे थे। एक आश्रम में उन्होंने अत्यंत वयोवृद्ध, धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में निराहार मन लगाए हुए, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता, महात्मा लोमेश मुनि को देखा। उन सभी ने जाकर ऋषि मुनि को प्रणाम किया, उन सभी लोगों को आते देख महीने पहुंचा आप लोग के कारण से आए हैं। ऋषि मुनि का जन्म केवल दूसरो के उपकार करने के लिए ही हुआ था, सभी लोग ने महिष्मति के राजा महिजित की व्यथा सुनाई। ऋषि मुनि ने राजा के पूर्व जन्म का वृतांत जाना और उन सभी को कहा वह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन था, निर्धन होने के कारण उसने कई बुरे कर्म किए। एक समय वह दो दिन से भूखा था और ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मध्य के समय वह जलाशय में जल पीने गया, उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी। राजा ने उसे हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसलिए राजा को यह दुख सहना पड़ रहा है। एकादशी के दिन भूखा रहने से वजह से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण उसे पुत्र वियोग का दुख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोगों ने ऋषि मुनि से राजा के इस पाप के नष्ट होने का उपाय पूछा। तब ऋषि मुनि ने कहा पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को सभी लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो इससे राजा के पूर्व जन्म का पाप नष्ट हो जाएगा, साथ में राजा को पुत्र प्राप्ति भी जो जायेगी। इतना सुनते ही सारी प्रजा और मंत्री नगर को वापस लौट आई और पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत किया। ऐसा करने से रानी गर्भवती हो गई और उसे एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता है जिससे संतान सुख की प्राप्ति हो।
दोस्तों आपको हमारा आज का पुत्रदा एकादशी का लेख कैसा लगा आप हमे नीचे कमेंट करके जरूर बताएं
धन्यवाद