सफला एकादशी कब है, साल की पहली सफला एकादशी का महत्व क्या है । Safla Ekadashi Kab Hai 2024

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हेलो दोस्तों, जैसा कि आप सभी को ज्ञात है हमारे हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का सर्वाधिक महत्व माना गया है, जिसे भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है। एकादशी का व्रत करने से जातक के जीवन में भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी सदैव बनी रहती है। अभी हाल ही में ईसाई नव वर्ष शुरू हुआ है और नव वर्ष की पहली एकादशी 7 जनवरी 2024 को है जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। हर साल पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी मनाई जाती है, इस दिन जातक द्वारा पूजा करने पर उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, साथ में उसके सभी दुखों से उसे छुटकारा मिलता है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से सफला एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देने का प्रयास करेंगे, अंत तक हमारे साथ बने रहिएगा।

नाम सफला एकादशी 
तिथि प्रारंभ12 बजकर 41 मिनिट
तिथि समापन12 बजकर 46 मिनिट
कब है07 जनवरी 2024 

सफला एकादशी क्या है 

हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी कहते हैं, मान्यता है इस दिन भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा व्रत करने थे, सभी जातकों के जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है और उनके घर मां लक्ष्मी का सदैव आगमन होता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को ही समर्पित मानी जाती है, इस दिन भूलकर भी ऐसे काम नहीं करना चाहिए जिससे भगवान विष्णु नाराज हो। 1 साल में 24 एकादशी होती है इन सभी का अपना-अपना अलग ही महत्व माना जाता है।

सफला एकादशी कब है 

इस बार सफला एकादशी 7 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी यह तिथि रात्रि 12 बजकर 41 मिनिट पर शुरू होगी, जो 8 जनवरी को रात में 12 बजकर 46 मिनिट पर समाप्त होगी। जिसका पारण द्वादशी तिथि को किया जाएगा।

सफला एकादशी का महत्व 

वैसे तो सनातन धर्म में सभी एकादशी तिथि का अलग-अलग महत्व होता है हर माह में 2 एकादशी होती है, एक कृष्ण पक्ष की एकादशी और एक शुक्ल पक्ष की एकादशी। पुराणों के अनुसार एकादशी का महत्व भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से है, इस दिन मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन व्रत करने से जातक की जीवन में नौकरियां से संबंधित परेशानी भी दूर होती है। 

सफला एकादशी के दिन क्या करना चाहिए

एकादशी के दिन जातक को क्या करना चाहिए कुछ इस प्रकार से है।

  • जो जातक एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • एकादशी के दिन रात्रि में जागरण करना चाहिए और भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए।
  • एकादशी के दिन जरूरतमंद की सहायता अवश्य करनी चाहिए।
  • एकादशी के दिन अधिक से अधिक दान पुण्य करना चाहिए और उस किए गए दान पुण्य को याद नहीं रखना चाहिए।
  • ब्रह्म मुहूर्त में सुबह उठकर अपने दैनिक दिनचर्या शुरू कर सकते हैं।

सफला एकादशी के दिन क्या नही करना चाहिए

एकादशी तिथि के दिन ज्यादा को को इन बातों का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए, जो कुछ इस प्रकार से हैं।

  • यदि आप एकादशी का व्रत करते हैं तो आपको दशमी तिथि से लेकर द्वादशी तिथि तक किसी भी प्रकार की तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना है।
  • एकादशी तिथि के दिन जातक को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और शाम के वक्त नहीं सोना चाहिए।
  • एकादशी तिथि के दिन चावल का सेवन न करें।
  • सप्लाई एकादशी के दिन काले रंग के कपड़े का उपयोग बिल्कुल ना करें

सफला एकादशी की पूजा विधि 

इस एकादशी को भगवान विष्णु के भक्ति उनकी विधि विद पूजा करते हैं, सफला एकादशी की पूजा विधि कुछ इस प्रकार से है।

  • सबसे पहले आप सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • अब आप अपने पूजा स्थल को भी गंगा जल छिड़ककर शुद्ध कर लें।
  • अब आपको तुलसी के पत्ते, हल्दी ,चंदन, कुमकुम और नारियल भगवान विष्णु की तस्वीर पर चढ़ता है।
  • इस दौरान आपको ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना है।
  • अब आप विधि पूर्वक जो पूजा करते हैं उसे पूजा को करें।
  • भगवान विष्णु की और मां लक्ष्मी की आरती करें।
  • आरती पश्चात सभी को प्रसाद बांटे।

सफला एकादशी की व्रत कथा 

सफला एकादशी की एक पौराणिक कथा है जो प्राचीन काल से चली आ रही है। प्राचीन समय के अनुसार चंपावती नाम का एक शहर था, जहां पर महिष्मान नाम के एक राजा रहते थे। उस राजा के 5 बेटे थे, जिन में उसका सबसे बड़ा बेटा अधर्मी और चरित्रहीन था। उसका बड़ा पुत्र देवी देवताओं की पूजा नहीं करता था और उनका अपमान भी करता रहता था, इसके अलावा बात तामसिक चीजों का भी सेवन करता था। जिससे राजा ने परेशान होकर उसका नाम लुंभक रख दिया था और उसे अपने राज्य से बाहर कर दिया था। राज्य से निकाल दिए जाने के बाद लुंभक जंगल में जाकर रहने लगा। कुछ दिन जंगल में बिताने के बाद एक रात ऐसी आई, जब काफी ठंड बढ़ गई और उस बढ़ती ठंड के चलते वह ठीक से सो नहीं पाया, जिससे अगली सुबह उसकी हालत खराब हो गई। दोपहर के समय सूर्य देव की रोशनी से उसे राहत मिली और वह पानी पीने के लिए आगे गया। पानी पीने के बाद उसे भूख लगी जिसके चलते वह फल तोड़ने के लिए निकल गया। जैसे ही वह शाम को फल लेकर वापस आया उसमें फलों को पीपल के पेड़ की जड़ के पास रख दिए। उसने फल खुद न खाकर भगवान विष्णु को समर्पित कर दिए जिससे लक्ष्मीपति भगवान श्री विष्णु ने प्रसन्न हो गए। जिस दिन वह ठीक से सो नहीं पाया था, उस दिन दशमी तिथि की रात थी और जिस दिन उसने भगवान विष्णु को फल अर्पित किए उस दिन एकादशी थी। इस प्रकार उसने दशमी तिथि से लेकर एकादशी तिथि तक कुछ नहीं खाया और भगवान को फल अर्पित कर दिए, जिससे उसने अनजाने में ही सफला एकादशी तिथि का व्रत कर लिया। एकादशी की रात में भी वह सर्दी के कारण सो नहीं पाया, जिससे उसने पूरी रात भगवान विष्णु के नाम का जागरण करते हुए बताया। इस प्रकार उसमें अनजाने में ही विधिपूर्वक एकादशी का व्रत कर लिया इसके प्रभाव से वह धर्म के मार्ग पर आ गया। जैसे ही राजा को इस बात का पता चला उसने अपने बेटे लुंभक को वापस बुला लिया। इसके बाद वहां चंपावती नगरी का राजा बन गया और राजा महिष्मान स्वयं तप करने जंगल चले गए। 

दोस्तों, आज हमने आपको सफला एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देने का प्रयास किया है। यदि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई है तो आप हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं।

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